शारदा माता मंदिर-
ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव मृत माँ देवी (हिंदी में माई ) सती के शरीर को ले जा रहे थे , तो उनका हार ( हिंदी में हर ) इस स्थान पर गिरा और इसलिए इसका नाम “मैहर” पड़ा (मैहर = माई + हर , जिसका अर्थ है “माँ का हार”)।मैहर के स्थानीय लोगों के अनुसार, राजा परमर्दिदेव चंदेल के शासन में योद्धा आल्हा और उदल , जिनका पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध हुआ था , शारदा देवी के बहुत बड़े अनुयायी थे।ऐसा कहा जाता है कि वे इस सुदूर जंगल में देवी के दर्शन करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने माँ देवी को “शारदा माई” के नाम से पुकारा, और तब से वे “माता शारदा माई” के रूप में लोकप्रिय हो गईं मैहर का इतिहास पुरापाषाण काल से जुड़ा है ।
मैहर राज्य की स्थापना ( कछवाहा राजपूत )-
मैहर रियासत की स्थापना कछवाहा वंशज श्रीमंत महाराजा बेनी सिंह जूदेव के द्वारा 1770 में की गयी जिसका क्षेत्रफल 407 वर्ग किलोमीटर था। उनके बाद उनके पुत्र महाराजा दुर्जन सिंह जूदेव गद्दी पर आसीन हुए।मैहर में स्थित माँ शारदा के मंदिर का निर्माण और मैहर क्षेत्र का विकास और परकोटा बनाकर मैहर क्षेत्र को सुरक्षित किया।
1820 में महाराजा दुर्जन सिंह ने अपना तुलादान करवाया और माँ शारदा के मंदिर पहुँचने के लिये सीढ़ियों का निर्माण करवाया और दर्शनार्थियों के लिए दो बावलियों का निर्माण भी करवाया।ब्रिटिश काल में उनके परपोते महाराजा रघुवीर सिंह जूदेव (1844-1908) ने मैहर शहर का और विकास कर कई और मंदिरों का निर्माण करवाया।उनके परपोते महाराजा बृजनाथ सिंह जूदेव (1896-1968) ने मैहर का आधुनिक विकास कराया जैसे पुलघटा का निर्माण रेलवे स्टेशन (1934) बाबा अल्लाउद्दीन खां साब को मैहर लाकर मैहर घराने की स्थापना की।बाबा प्रतिदिन की नमाज के साथ मां शारदा के दर्शन करने भी मंदिर जाया करते थे । लौटते वक्त एक पाइप का टुकड़ा जो उनके पैरों से टकराया और वह सीढी से से नीचे की ओर विभिन्न स्थितियों मैं गिरता जा रहा था। और बाबा को उससे स्वर मिल रहे थे, बाबा ने यह बात आकर महाराजा बृजनाथ सिंह जू देव जी से बताइए बाबा की बात सुनकर महाराज साहब ने बंदूक की पचासो नालियां कटवा दी बाबा ने उन नालियों को स्वर वध किया और लय में लाकर एक विश्व का अद्वितीय इकलौता बाद नल तरंग का ईजाद किया।
वर्त्तमान में शाशक श्रीमंत एच एच महाराजा बहादुर अक्षय राज सिंह जूदेव हैं। वर्तमान समय में मैहर राजपरिवार की प्रमुख राजमाता श्रीमंत कवितेश्वरी देवी तथा एच एच महाराजा बहादुर अक्षय राज सिंह जू देव से प्राप्त जानकारी अधोलिखित है।
बाबली के इतिहास पर चर्चा के साथ-
आलेख:
सन 1790 में एच एच श्रीमंत महाराजा बहादुर दुर्जन सिंह जू देव ने मां शारदा की अलौकिक प्रतिभा के दर्शन पूजन हेतु स्वयं के तुलादान से उपलब्ध धन तथा मोहरों से मंदिर, सीढ़ियों एवं दो बाओलियों के निर्माण के साथ यात्रियों के ठहरने हेतु धर्मशाला का निर्माण कराया। बाओलियों के जल का उपयोग माता जी के पूजन अर्चन तथा अभिषेक के साथ श्रद्धालुओं के पीने तथा स्नान आदि के लिए किया जाता रहा। एच एच महाराजा बहादुर बृजनाथ सिंह जू देव ने तत्पश्चात् मंदिर निर्माण कार्य एवम संरक्षण और संवर्धन प्रदान किया।
लोगों में पर्यावरण संबंधी जागरूकता के अभाव के कारण, गत कई दशकों से, मां शारदा मंदिर की आस्था से जुड़ी यह बाओली उपेक्षित रही । भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर ट्रस्ट ( INTACH ) भारत में विरासत जागरूकता और संरक्षण के नेतृत्व के लिए स्थापित किया गया था। देवी जी की इस महत्वपूर्ण बाओली के जीर्णोद्धार का कार्य Intach ( मैहर सतना चैप्टर ) ने अपने सक्षम हाथों में लिया और बिरला कॉरपोरेशन के आर्थिक सहयोग द्वारा इसे संपन्न किया।
वर्तमान में मंदिर समिति की व्यवस्था मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति, एवं धर्मस्य मंत्रालय के अधीन है, जिसका संचालन अध्यक्ष कलेक्टर सतना तथा प्रशासक एसडीएम मैहर द्वारा निष्ठा पूर्वक किया जा रहा है।
मैहर जिला की जिलाधीश महोदया श्रीमती रानी बाटड जी का भ्रमण बाबली में इंटेक् के मार्फत किए गए प्रोजेक्ट के अवलोकन के साथ उसे मूर्ति रूप देने की पहल के उद्देश्य से हुआ। श्रीमती अंबिका बेरी जी के कुशल निर्देशन में बाबली को मूर्ति रूप देने एवं मैहर में कुछ अन्य प्रोजेक्ट पर भी कार्य करने की बात उनके द्वारा कही गई।